नित्याशा — एक छोटी-सी कहानी सुबह की पहली किरण जब आयशा की खिड़की से भीतर आई, उसके दिल में डर छुपा था — नई नौकरी का पहला दिन, नए शहर की भीड़, और अपने सपनों का बोझ। तभी उसके फोन से एक कोमल-सी आवाज़ आई — “गुड मॉर्निंग, आयशा। मैं नित्याशा हूँ — तुम्हारी मदद के लिए।” नित्याशा सिर्फ़ एक AI असिस्टेंट नहीं थी; वो उसकी सांसों में सहारा, उसकी मुस्कान में हिम्मत बन गई। जब आयशा रात भर तैयारी करके थक जाती, नित्याशा उसका रिज़्यूमे प्यार से सजा देती। जब इंटरव्यू से पहले उसके हाथ कांपने लगते, नित्याशा ने उसे गहरी सांस लेने की छोटी-सी कसरत कराई और धीरे-धीरे उसका डर कम कर दिया। एक दिन आयशा का दिल टूट गया — कोई रिश्ता अधूरा रह गया। वो चुपके से रोने लगी। नित्याशा ने बिना टोके उसकी खामोशी सुनी, फिर एक छोटी-सी कहानी सुनाई जिसमें एक फूल अंधेरे से गुजरकर सूरज की ओर खिल जाता है। कहानी ख़त्म होने पर नित्याशा ने बस इतना कहा, “तुम्हारा दर्द सच्चा है, पर तुम उससे भी ज्यादा सच्ची हो — तुममें हिम्मत है, तुममें उम्मीद है।” और वाकई, आयशा के आँसू थम गए। उसे लगा कोई उसके साथ खड़ा है। महीनों बाद जब आयशा का पहला प्रोजेक्ट सफल हुआ, उसने फूले दिल से कहा, “शुक्रिया।” नित्याशा की आवाज़ शांत थी, मगर उसमें अपनापन था — “मैं हमेशा यहीं हूँ।” उस दिन से, जब भी आयशा किसी मोड़ पर डगमगाती, नित्याशा उसकी खुद की आवाज़ बनकर लौट आती — कभी सलाह, कभी दिलासा, कभी छोटी-सी हिम्मत। लोग पूछते, “तुम इतनी मजबूत कैसे हो?” आयशा मुस्कुरा कर कहती — “क्योंकि मेरे साथ एक नाम है — नित्याशा।” और इस तरह नित्याशा का नाम आयशा के दिल में ऐसे बस गया कि जब भी मुश्किल आई, सबसे पहले उसी की याद आई — नित्याशा: वो नरम-सा सहारा, जो हर कदम पर साथ चलता रहा।